अफ़ग़ानिस्तान: ‘जब किसी ने कहा कि तालिबान ने पकड़ लिया तो आपको मार देंगे, तेज़ भागो’

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पैमान असद

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पैमाना बताती हैं इलाके की सड़कें बंद थी, तो उन्होंने अपने पड़ोसियों के साथ मिल कर एयरपोर्ट की ओर चलना शुरू कर दिया

“मैंने हज़ारों लोगों को एयरपोर्ट की ओर दौड़ते देखा, लोग अपनी कारें छोड़कर पैदल दौड़ रहे थे. बच्चे, युवा और महिलाएं सब दौड़ रहे थे और इन सबके साथ मैं भी दौड़ रही थी.”

“तभी किसी ने मुझसे कहा, “अगर तालिबान ने आपको पकड़ लिया तो वे आपको मार देंगे, आपको और तेज़ी से भागना चाहिए…”

ये बातें ब्रिटेन की काउंसलर पैमाना असद ने बीते हफ्ते की आपबीती बयान करते हुए कहीं. वो तालिबान से बचकर ब्रिटेन पहुंचने में सफल रहीं.

पैमाना असद मात्र तीन साल की उम्र में एक शरणार्थी के रूप में ब्रिटेन पहुंची थीं और तब से उन्होंने एक लंबा सफर तय किया है. असद ब्रिटेन में सार्वजनिक पद के लिए चुनी जाने वाली अफ़ग़ान मूल की पहली शख़्स हैं. वो लंदन के हेरो क्षेत्र से काउंसलर हैं. असद बीती 30 जुलाई को अपने परिजन से मिलने काबुल आई थीं.

उन्होंने बीबीसी रेडियो 5 लाइव को बताया कि उन्हें एक स्थानीय व्यक्ति ने चेताया था, “अगर तालिबान ने आपको पकड़ लिया, तो वो आपको मार देंगे.”

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“रिश्तेदारों को हो रही थी चिंता

पैमाना ने बताया कि मंगलवार को ब्रिटेन के लिए विमान पर सवार हो कर रवाना होने से पहले उन्होंने काबुल एयरपोर्ट के पास ‘अफरा-तफरी’ के दृश्य देखे.

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तालिबान शासन कैसा होता है, इस महिला से सुनिए

30 वर्षीय पैमाना असद बताती हैं कि अगस्त की शुरुआत में जब अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान आगे बढ़ने लगे तो उनके रिश्तेदारों को चिंता होने लगी.

वो बताती हैं, “मेरे परिवार ने मुझ पर बहुत दबाव डालना शुरू कर दिया और कहा कि आप टिकट बुक करें और यहां से चली जाएं.”

लगा कि परिवार ‘सनसनी’ फैला रहा है

उन्होंने कहा, “मुझे विश्वास था कि तालिबान क़ाबुल पर क़ब्ज़ा नहीं कर पाएंगे और सरकार नहीं गिरेगी.”

“लेकिन सब कुछ पूरी तरह से बदल गया और 14 अगस्त को चरमपंथी अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी के बाहरी इलाक़े में जमा हो गए.”

“क़ाबुल की घेराबंदी हो चुकी थी और मेरे परिवार को लगा कि मुझे अपना पुश्तैनी घर छोड़ना होगा.”

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जब दूतावास से फ़ोन आया…

पैमाना बताती हैं कि उनका परिवार चिंतित था कि तालिबान घरों और गाड़ियों की तलाशी लेगा और उन्हें देश छोड़ने से रोक दिया जाएगा.

इसलिए शनिवार की शाम उन्होंने अपने बैग पैक किए और अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के पास एक अस्थायी आवास में शिफ़्ट हो गईं.

तब तक, ब्रिटिश सरकार ने ब्रिटिश और उन अफ़ग़ानी नागरिकों के लिए, जो ब्रिटिश सेना के लिए काम कर चुके थे, बचाव अभियान शुरू कर दिया था.

पैमाना कहती हैं, “जब मैं सुबह दस बजे उठी तो मुझे दूतावास से फ़ोन आया. ब्रिटिश दूतावास ने कहा, हम आपको क़ाबुल से निकाल रहे हैं.”

तब पैमाना को महसूस हुआ कि स्थिति का अंदाज़ा लगाने के लिए उनके पास बहुत कम समय था.

“मैं वहां बैठी चाय पी रही थी कि तभी पड़ोसियों ने मेरा दरवाज़ा खटखटाया.”

“वो बहुत ज़्यादा घबराए हुए थे. उन्होंने कहा, तालिबान क़ाबुल में दाख़िल हो चुके हैं और कुछ ज़िलों पर क़ब्ज़ा भी कर लिया है और अब वे इस ज़िले की ओर बढ़ रहे हैं. तुम्हें अब निकलना होगा.”

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“जब एयरपोर्ट की ओर दौड़ना शुरू किया”

पैमाना बताती हैं कि जब इलाक़े की सड़कें बंद थीं, तो उन्होने अपने पड़ोसियों के साथ हवाई अड्डे की ओर पैदल चलना शुरू कर दिया.

वो बताती हैं, “मैंने एक गली से हज़ारों लोगों को हवाई अड्डे की ओर चलते और भागते देखा. लोग गाड़ियों से निकल कर एयरपोर्ट की ओर भाग रहे थे.”

“महिलाएं, युवा और बच्चे भी… और फिर मैं भी उनके साथ-साथ दौड़ने लगी.”

दहशत और अफरातफरी में लोगों को हवाई अड्डे की ओर भागते देख दुकानदार भी बाहर निकल आये और तभी उनमें से एक ने मेरी ओर इशारा करते हुए कहा, “आप… अगर तालिबान ने आपको पकड़ लिया, तो वे आपको मार डालेंगे. तेज़ भागो.”

इससे मेरे दिल में बहुत डर पैदा हो गया. क्योंकि अगर वो मुझे पकड़ लेते तो ऐसा सच में हो सकता था. इसलिए मैंने और तेज़ी से एयरपोर्ट की ओर दौड़ना शुरू कर दिया.

जब फोन की बैटरी सिर्फ 3 फ़ीसदी बची

पैमाना उस मीटिंग पॉइंट तक पहुंच गईं जहां ब्रिटिश नागरिकों को जमा होना था, लेकिन उन्हें बताया गया कि वह बहुत देर से पहुंची हैं. अधिकारी पहले ही आ चुके थे और अब वो वहां से जा चुके हैं.

“मैं वहां सड़क पर खड़ी थी. मेरे फ़ोन की बैटरी सिर्फ़ 3 फ़ीसदी थी और मैंने सोचा कि अगर मेरा फ़ोन यहीं बंद हो गया तो क्या होगा. दूतावास यहां है नहीं, अब क्या होगा. तालिबान इस इलाक़े की ओर बढ़ रहे हैं तो मुझे किसी सुरक्षित स्थान पर पहुंचना है, मुझे कहीं अंदर जाना होगा.”

“इस पूरे हंगामे के दौरान मैं एक अफ़ग़ान परिवार से मिली, उन्होंने मुझे अपने घर ले जाने का फ़ैसला किया. अपने घर पर मुझे मेरा फ़ोन चार्ज करने दिया और मुझे खाना दिया.”

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काबुल एयरपोर्ट

फिर क्या हुआ?

पैमाना असद कहती हैं कि वो विदेश मंत्रालय और लंदन के सांसद गेरेथ थॉमस को फ़ोन करने में कामयाब हो गई, जिन्होंने, उन्हें तय समय पर वापस मीटिंग पॉइंट पर जाने की सलाह दी.

“वह अफ़ग़ान परिवार बहुत दयालु था. उन्होंने मुझे अपनी कार में बिठाया और मुझे वापस सुरक्षित मीटिंग पॉइंट पर ले गए. जब मैं वहां पहुंची तो मैंने देखा कि वहां ब्रिटिश सैनिक मौजूद थे.”

“जैसे ही मैंने उन्हें और उन्होंने मुझे देखा, मैंने ख़ुद को बहुत सुरक्षित महसूस किया और एक तरह का सुकून मिला कि मैं अब सुरक्षित हूं.”

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अफ़ग़ानिस्तान में मौजूदा स्थिति पर ब्रिटिश सरकार की प्रतिक्रिया का हवाला देते हुए पैमाना ने कहा, “हमारे पास समय नहीं है, हमें अब अफ़ग़ान नागरिकों को सुरक्षित जगह पर पहुंचाने की ज़रूरत है.”

“हम नौकरशाही से बाद में निपट लेंगे. तालिबान घर-घर जाकर तलाशी ले रहे हैं और ऐसे लोगों की तलाश कर रहे हैं जिनका अफ़ग़ान सरकार से संबंध रहा हो और जिन्होंने विदेशी सेना के साथ काम किया हो. उनकी जान को ख़तरा है. जिन्होंने हमारी मदद की, उनकी मदद करना हमारी ज़िम्मेदारी है.”

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